जहानाबाद पुलिस की छवि पर उंगलियां उठना लाज़िमी हो जाता है। बिहार इन दिनों न सिर्फ अपराध की गिरफ्त में है, बल्कि आम आदमी का एतबार भी पुलिस से डगमगाया है।लेकिन इसी स्याही के बीच जहानाबाद से एक रौशनी की किरन आई है। एसपी विनीत कुमार ने ऐसा मंजर पेश किया जिसने अफसरशाही के चांदनी गलियारों में इंसानियत की महक घोल दी। जब शनिवार को पुलिस दफ्तर में जनता दरबार लगा, तो वो सिर्फ़ एक रिवायती सुनवाई नहीं थी वो एक जज़्बाती कहानी बन गई।
एक बुज़ुर्ग, के हाथ में कागज, दिल में उम्मीद और आंखों में सफर की थकान लेकर एसपी के सामने पहुंचे। और फिर जो हुआ उसने वहां मौजूद हर आंख को नम कर दिया। जहानाबाद एसपी विनीत कुमार, अपनी कुर्सी छोड़कर घुटनों के बल उस बुज़ुर्ग के सामने बैठ गए। न कोई दिखावा, न कैमरे का खेल बस खालिस अदब, तहजीब और इंसानी जुबान का संवाद।
बुज़ुर्ग साहब भी अपनी जगह से उठे, जमीन पर बैठ गए।जमीन पर बैठकर इंसाफ़ की बातें हुईं। अफसर नहीं, एक बेटा अपने बूढ़े बाप की सुन रहा था। लोगों की जबान पर एक ही जुमला था “ये अफसर नहीं, रहमत का कोई अक्स लगता है!”
जब आला अधिकारी अक्सर रौब और रुतबे की चादर ओढ़कर चलते हैं, वहां विनीत कुमार ने इंसाफ और इज़्जत का कंबल फैला दिया।आज जहानाबाद के लोग सिर्फ़ पुलिस से नहीं, अपने एसपी से मोहब्बत करते हैं।
जहानाबाद की इस तस्वीर ने साबित कर दिया कि जब अफसर दिल से काम करे, तो पुलिस और जनता के दरम्यान सिर्फ़ भरोसे का पुल रह जाता है।



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